प्रकाश के रे bargad.org के संपादक हैं.
डिजिटल तकनीक से हमारे जीवन के हर पहलू में लगातार बदलाव हो रहे हैं. इसके बिना आधुनिक जीवन-शैली की कल्पना कर पाना मुमकिन नहीं है. हमारे हाथ या जेब में जो स्मार्ट फोन है, वह हमारा बटुआ भी है, संपर्क का जरिया भी और मनोरंजन का उपकरण भी. इसी कड़ी में नया दखल है वैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म का, जो सीधे हमारे मोबाइल में फिल्मों, सीरियलों और अन्य विजुअल कार्यक्रमों का प्रसारण कर रहे हैं. इन्हें ‘ओवर द टॉप’ यानी ओटीटी प्लेटफॉर्म कहा जाता है. कुछ समय पहले तक इंटरनेट के जरिये यूट्यूब जैसे गिनी-चुनी जगहों पर हम ऑडियो-विजुअल कंटेंट का मजा उठा सकते थे. लेकिन आज भारत में करीब 25 ऐसे प्लेटफॉर्म हैं जो क्रिकेट मैच से लेकर फिल्में और धारावाहिक दिखा रहे हैं. इनमें से अधिकांश ऐसे कार्यक्रम हैं जो सिर्फ इन्हीं प्लेटफॉर्म पर मौजूद हैं. एप्प के द्वारा मोबाइल फोन में मनोरंजन परोसनेवाली प्रमुख सेवाओं में नेटफ्लिक्स, हॉट स्टार, आमेजन प्राइम, जिओ प्ले, वूट, सोनी लिव, डिट्टो टीवी, इरोस नाउ, सन एनएक्सटी, ओजी टीवी, एप्पल टीवी आदि शामिल हैं. ये कंपनियां उपभिक्ताओं से निर्धारित मासिक या सालाना शुल्क लेकर सेवाएं देती हैं. यह शुल्क दो सौ से दो हजार रुपये के बीच हैं. अलीबाबा भी कुछ महीनों में अपना ओटीटी चैनल ला रहा है.
भारत के डिजिटल बाजार की बढ़त की अपार संभावनाएं हैं और ओटीटी सेवाप्रदाता इसे बखूबी समझते हैं. यही कारण है कि वे इसमें लगातार निवेश कर रहे हैं. आम तौर पर टीवी धारावाहिक के एक एपिसोड पर 20 लाख के करीब खर्च आता है, पर ये कंपनियां अपने धारावाहिकों के एक एपिसोड पर करोड़-दो करोड़ खर्च करने को तैयार हैं. नेटफ्लिक्स ने मौलिक और लाइसेंसशुदा कार्यक्रमों के लिए ही छह अरब डॉलर का वैश्विक बजट तैयार किया है. कुछ रिपोर्टों के अनुसार इस कंपनी ने 20 अरब डॉलर का कर्ज लिया है ताकि भारत जैसे नये बाजारों में मजबूत मौजूदगी दर्ज करायी जा सके. आमेजन ने भारतीय बाजार के लिए दो हजार करोड़ का बजट बनाया है. हॉट स्टार का स्वामित्व रखनेवाली कंपनी स्टार इंडिया ने डिजिटल कंटेंट के लिए 12 सौ करोड़ से अधिक का निवेश करने की योजना बनायी है. आक्रामकता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि आइपीएल क्रिकेट मैचों के टीवी और डिजिटल प्रसारण के लिए स्टार इंडिया ने ढाई अरब डॉलर से अधिक का करार किया है.
फिल्मों और अन्य तरह के मनोरंजक कार्यक्रमों की खरीद के साथ ओटीटी प्लेटफॉर्म अपने लिए अलग से कार्यक्रम भी तैयार करा रहे हैं और फिल्म निर्माताओं एवं स्टूडियो से करार भी कर रहे हैं. चूंकि अभी भी इंटरनेट का बाजार भारत में मुख्य रूप से प्री-पेड है और सब्सक्राइबर संख्या में बढ़ोतरी के बावजूद ओटीटी कंपनियां मोबाइल सर्विस देनेवाली कंपनियों के साथ भी करार कर रही हैं ताकि उनके कंटेंट उपभोक्ताओं तक पहुंच सकें. ऐसा करते हुए मोबाइल कंपनियां भी अपने ओटीटी प्लेटफॉर्म को भी मजबूत बना रही हैं.
उपलब्ध आंकड़ों को देखें, तो बड़ी दिलचस्प तस्वीर उभरती है. अगस्त, 2016 से अगस्त, 2017 के बीच 16 ओटीटी सेवा प्रदाताओं के उपभोक्ताओं में 160 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई थी. अब इसकी तुलना डीटीएच के आंकड़ों से करें. साल 2017 के अप्रैल और जून के बीच डीटीएच में वृद्धि महज 7.9 फीसदी रही थी, जबकि इसी अवधि में 2016 में यह दर 52 फीसदी थी. इससे साफ संकेत मिलता है कि डीटीएच की मांग कम हो रही है. टेलीविजन तकनीक में विकास इसका एक कारण हो सकता है. स्मार्ट टीवी को सीधे इंटरनेट से जोड़ा जा सकता है और नये टीवी मॉडलों को नेटकास्ट उपकरणों के जरिये इंटरनेट से जोड़ा जा सकता है. मतलब यह कि ओटीटी प्लेटफॉर्म की फिल्मों या कार्यक्रमों को हम मोबाइल फोन के साथ टीवी पर भी देख सकते हैं. इस लिहाज से ओटीटी का प्रसार डीटीएच बाजार के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है. जब आप नेट से समाचार, सूचनाएं और मनोरंजन पा सकते हैं, तो फिर छत पर डीटीएच की छतरी का क्या मतलब!
आकलन बताते हैं कि 2016 में ओटीटी बाजार 20.20 करोड़ डॉलर का था, जो 2017 में 27.20 करोड़ डॉलर का हो सकता है. कुछ दिनों में आंकड़े आने पर स्थिति साफ हो जायेगी. ओटीटी बाजार के बढ़त की संभावनाएं मोबाइल और नेट के प्रसार से जुड़ी हुई हैं. फिलहाल देश में 25 करोड़ स्मार्ट फोन हैं और 2020 तक इनकी संख्या 60 करोड़ तक पहुंच सकती है जिनमें से 85 फीसदी 4जी कनेक्शन के होंगे. डेटा उपभोग का मौजूदा हिसाब औसतन 8-9 जीबी प्रति माह हो गया है. मोबाइल बाजार की गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा के चलते इंटरनेट डेटा की कीमतें सस्ती भी हो रही हैं और उनकी गति में भी लगातार बेहतरी हो रही है. यह भी दिलचस्प है कि मोबाइल डेटा का जो ट्रैफिक है, उसका 60 फीसदी हिस्सा वीडियो कंटेंट का है. माना जा रहा है कि 2016 से 2021 के बीच इसमें 63 फीसदी की वृद्धि होगी. जून, 2016 से जनवरी 2017 के बीच आंकड़े इंगित करते हैं कि इस दौरान सोशल मीडिया पर समय बिताने में 40 फीसदी की बढ़ोतरी हुई, जबकि इसी अवधि में वीडियो एप्प पर समय बिताने में 135 फीसदी की वृद्धि हुई.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि ओटीटी का विस्तार तेजी से हो रहा है, पर आनेवाले समय में बाजार में कितनी कंपनियां बचेंगी, यह कहना मुश्किल है. बहुत अधिक निवेश और लगातार कंटेंट बनाने की होड़ उन कंपनियों के लिए फांस बन सकती है जिनके उपभोक्ता कम होंगे या उनमें लगातार निवेश की क्षमता कम होगी. यह हाल हम टेलीकॉम सेक्टर में देख चुके हैं. यह भी देखने की बात होगी कि सेंसरशिप न होने और मनोरंजन के फॉर्मुलों के कम दबाव का लाभ उठा कर ओटीटी प्लेटफॉर्म बेहतर मनोरंजन दे पाते हैं या नहीं.